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वो मुकदमा जिसने सद्दाम को फांसी के फंदे तक पहुंचाया और अमेरिकी सैनिकों की आंखों से छलक पड़े आंसू

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सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगाए गए 12 अमेरिकी सैनिकों ने उनके आखिरी समय में एक बेहतरीन दोस्त बनने की कोशिश की. अमेरिकी 551 मिलिट्री पुलिस कंपनी से चुने गए ‘सुपर ट्वेल्व’ के सैनिकों की निगरानी में सद्दाम अपनी आखिरी सांस तक रहे.

वो मुकदमा जिसने सद्दाम को फांसी के फंदे तक पहुंचाया और अमेरिकी सैनिकों की आंखों से छलक पड़े आंसू

अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बूश ने पद संभालते ही सद्दाम पर शिंकजा कसना शुरू कर दिया.

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एक तानाशाह, जिसके जन्म से पहले ही उसके मजदूर पिता की मौत हो गई. मुश्किलों में गुजरे उसके बचपन ने विद्रोह की आग उसके अंदर भर दी. किशोरावस्था में कदम रखते-रखते वह अपने देश से ब्रिटिश नियंत्रित राजतंत्र को उखाड़ फेंकने के आंदोलन में कूद पड़ा. वक्त बीता, अंग्रेजों का राजतंत्र उसके देश से खत्म हुआ. इस बीच उसने एक सोशलिस्ट पार्टी का झंडा उठा लिया और फिर संघर्ष और ताकत के बूते अपने देश की सत्ता की शिखर तक पहुंचा, लेकिन यहां तक पहुंचने का उसका रास्ता लाशों की ढेर से होकर गुजरा और यही उसकी मौत के कारण भी बने.

बीत रहे साल के कैलेंडर में आज 30 दिसंबर की तारीख है, जिसके इतिहास के पीले पड़ चुके पन्ने में एक तानाशाह की आखिरी सुबह दर्ज है. ठीक 14 साल पहले 30 दिसंबर 2006 को इराक राष्ट्रपति रह चुके सद्दाम हुसैन को फांसी दी गई थी. तो आज बात सद्दाम हुसैन के आखिरी दिनों की और साथ ही उस मामले की भी, जिसकी वजह से सद्दाम को सजा-ए-मौत दी गई.

24 साल पहले किए गुनाह की मिली सजा – 28 अप्रैल 1937 को बगदाद के उत्तर में स्थित तिकरित के पास अल-ओजा गांव में पैदा हुए सद्दाम की मौत, उत्तरी बगदाद खदीमिया इलाके के कैंप जस्टिस में हुई. जहां उन्हें फांसी दी गई. सद्दाम को मिली इस सजा के पीछे 24 साल पहले किया गया उनका एक गुनाह था. जब साल 1982 में एक बार दुजैल गांव में सद्दाम पर हमला हुआ, तो इसके जवाब में उन्होंने 148 शियाओं की हत्या करवा दी. इसी तरह कुर्दों के ऊपर भी सद्दाम ने खूब जुल्म ढाए. सद्दाम हुसैन दो दशक से ज्यादा समय तक इराक के शासक रहे. साल 1979 में सद्दाम ने खराब स्वास्थ्य के नाम पर जनरल बक्र को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर किया और खुद इराक के राष्ट्रपति बन बैठे.

कुवैत पर हमले ने बिगाड़े संबंध

राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के समय अमेरिका के साथ बेहतर रहे सद्दाम हुसैन के संबंध, जार्ज बुश के आते-आते खराब हो गए. तेल के कीमतों का विवाद और इराक का अपने पड़ोसी मुल्कों के खिलाफ जंग के रवैये ने अमेरिका से उसके संंबंध बिगाड़ दिए. जब साल 1990 में इराक ने कुवैत को तेल के दामों को नीचे गिराने के आरोप लगाकर उसके साथ जंग छेड़ी, तो अमेरिकी फौज ने दबाव बनाकर इराकी सेना को कुवैत से पीछे लौटाया.

अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बूश ने पद संभालते ही सद्दाम पर शिंकजा कसना शुरू कर दिया और इराक पर जैविक हथियार रखने का आरोप लगा. इसके बाद 2002 में संयुक्त राष्ट्र के दल ने इराक का दौरा किया, लेकिन उन्हें कुछ मिला नहीं. मार्च 2003 में अमेरिका ने अपने मित्र देशों के साथ इराक पर हमला कर दिया. इसके बाद इराकी सेना और अमेरिकी फौज के बीच 40 दिनों तक जंग चली और आखिरकार अमेरिका ने मित्र देशों की मदद से सद्दाम हुसैन की सरकार को गिरा दिया. 13 दिसंबर 2003 को सद्दाम हुसैन को तिकरित के एक घर में अंदर बने बंकर से गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद सद्दाम पर कई मामलों में मुकदमा चला, लेकिन सजा-ए-मौत 148 शियाओं की हत्या के मामले में हुई.

सद्दाम हुसैन की आखिरी सुबह

सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगाए गए 12 अमेरिकी सैनिकों ने उनके आखिरी समय में एक बेहतरीन दोस्त बनने की कोशिश की. अमेरिकी 551 मिलिट्री पुलिस कंपनी से चुने गए ‘सुपर ट्वेल्व’ के सैनिकों की निगरानी में सद्दाम अपने अंतिम सांस तक रहे. इनमें से एक सैनिक रहे विल बार्डेनवर्पर ने ‘द प्रिजनर इन हिज पैलेस’ नाम से एक किताब लिखी है. जिसमें उन्होंने सद्दाम हुसैन के आखिरी दिनों की तमाम बातों को जिक्र किया है. बार्डेनवर्पर ने इस बात को माना है कि जब सद्दाम हुसैन को आखिरी बार उन्होंने देखा और फांसी देने वाले लोगों को हवाले किया, तो सुरक्षा में लगे सभी सैनिकों की आंखें आंसुओं से गिली हो गई थीं.

सद्दाम हुसैन को उनके मुकदमे के दौरान दो जेलों में रखा गया था. पहला बगदाद में अंतर्राष्ट्रीय ट्राइब्यूनल का तहखाना और दूसरा उत्तरी बगदाद में उनका एक महल था. बार्डेनवर्पर लिखते हैं, ‘हमने सद्दाम हुसैन को सिर्फ उतना ही दिया, जिसके वो हकदार थे. इसके अलावा हमने उन्हें कुछ नहीं दिया. हालांकि, हमने उनकी गरिमा को कभी भी ठेस नहीं पहुंचाई’.

अमेरिकी सैनिक को पहना दी अपनी घड़ी

बार्डेनवर्पर ने अपने किताब में लिखा- 30 दिसंबर को सद्दाम को तड़के सुबह तीन बजे जगाया गया और बताया गया कि उन्हें थोड़ी देर में फांसी दे दी जाएगी. वो चुपचाप नहाने चले गए और फांसी के लिए खुद को तैयार किया. अपनी फांसी के कुछ मिनट पहले सद्दाम ने अमेरिकी सैनिक स्टीव हचिन्सन (जो लंबे समय से उनके साथ थे) को अपनी जेल की कोठरी के बाहर बुलाया और सलाखों के बाहर हाथ निकालकर अपनी रेमंड वील कलाई घड़ी उन्हें पकड़ा दिया. हचिन्सन ने इसके लिए मना किया, लेकिन सद्दाम ने वो घड़ी उन्हें सौंप दी. हचिन्सन ने सद्दाम को फांसी दिए जाने के बाद अमेरिकी सेना से इस्तीफा दे दिया था.

सिगार पीने का बेहद शौक

सद्दाम हुसैन ने फांसी दिए जाते समय किसी तरह का विरोध नहीं किया, लेकिन काला नकाब पहनने से इंकार कर दिया. सद्दाम को फांसी दिए जाने के बाद जब उनके शव को बाहर ले जाया गया, तो वहां खड़ी भीड़ ने उनके ऊपर थूका था और उसके साथ बदसलूकी की थी. एक अमेरिकी सैनिक ने इसका विरोध भी किया, लेकिन उसे पीछे हटने के आदेश दे दिए गए. बार्डेनवर्पर ने लिखा-  ‘इराकी जेल में सद्दाम ने अपने अंतिम दिन अमरेकी गायिका मेरी जे ब्लाइजा के गानों को सुनते हुए बिताया. सद्दाम को ‘कोहिबा’ सिगार पीने का बेहद शौक था’.

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