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वक्फ बोर्ड के फैसले का विरोध, रज़ा यूनिटी फाउंडेशन ने बताया संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन

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वक्फ बोर्ड द्वारा जुम्मे की नमाज के दौरान तकरीरों को वक्फ बोर्ड से अनुमोदित कराने की अनिवार्यता के फैसले का प्रदेशभर में विरोध हो रहा है।

छत्तीसगढ़ में वक्फ बोर्ड द्वारा जुम्मे की नमाज के दौरान तकरीरों को वक्फ बोर्ड से अनुमोदित कराने की अनिवार्यता के फैसले का प्रदेशभर में विरोध हो रहा है। रज़ा यूनिटी फाउंडेशन छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष ने इस फैसले की कड़ी निंदा करते हुए इसे संविधान में प्रदान की गई धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है।

प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, “वक्फ बोर्ड का यह कदम मस्जिदों और इमामों की स्वायत्तता को बाधित करता है। अगर किसी भी धर्म के व्यक्ति द्वारा गलत या भड़काऊ भाषण दिया जाता है, तो इसके लिए सरकार और कानून पहले से ही मौजूद हैं। ऐसे मामलों को रोकने के लिए अलग से आदेश लाना जरूरी नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा कि यह फैसला मस्जिदों और इमामों की छवि खराब करने का प्रयास है। मस्जिदों में जुम्मे की नमाज के दौरान कुरान और हदीस की शिक्षाओं पर आधारित सामाजिक और नैतिक विषयों पर तकरीर होती है। ऐसे में सभी तकरीरों को पहले से अनुमोदित कराने की प्रक्रिया न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि मौलवियों के आत्मसम्मान को भी आहत करती है।

धार्मिक मामलों में दखलअंदाजी न करे वक्फ बोर्ड
रज़ा यूनिटी फाउंडेशन ने वक्फ बोर्ड के इस फैसले को “धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप” करार दिया और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड को मस्जिदों की देखरेख और प्रबंधन तक सीमित रहना चाहिए, न कि धार्मिक उपदेशों को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए।

संविधान के खिलाफ
फाउंडेशन के अध्यक्ष ने बताया कि यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है, जो सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। “ऐसे फैसले न केवल धार्मिक स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं, बल्कि समाज में असंतोष और अविश्वास का माहौल भी पैदा कर सकते हैं।”

आंदोलन की चेतावनी
रज़ा यूनिटी फाउंडेशन ने कहा कि यदि वक्फ बोर्ड इस फैसले को वापस नहीं लेता, तो इसके खिलाफ एकजुट होकर विरोध किया जाएगा। संगठन ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि वे इस फैसले को रद्द करने के लिए हस्तक्षेप करें।

“सौहार्द्र बढ़ाने का दावा, लेकिन असर उल्टा”
फाउंडेशन ने कहा कि वक्फ बोर्ड का यह कदम सामाजिक सौहार्द्र को बढ़ाने की बजाय धार्मिक संस्थाओं पर संदेह पैदा करने वाला है। “जो इमाम हमेशा शांति और भाईचारे की बात करते हैं, उन पर अविश्वास करना अनुचित है।”

मांग:

  1. वक्फ बोर्ड के फैसले को तुरंत रद्द किया जाए।
  2. धार्मिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप रोका जाए।
  3. सांप्रदायिकता फैलाने वाले मामलों में कानून को सख्ती से लागू किया जाए, लेकिन इसके लिए पूरी धार्मिक व्यवस्था को नियंत्रित करना उचित नहीं है।

अगले शुक्रवार से लागू होने वाले इस फैसले को लेकर अब यह देखना होगा कि सरकार और वक्फ बोर्ड इस पर क्या रुख अपनाते हैं।

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